सफलता क्या है? (What is Success)

सफल कैसे बना जाए? यह एक जटिल प्रश्न है। सफलता कोई चिड़िया नहीं जिसे जाल मंे फँसा कर पिंजरे में बंद कर लिया जाए या फिर सफलता पेड़ पर नहीं लगती जिसे तोड़कर खा लिया जाए। सफलता नाम है संघर्ष का, योजनाओं को अमल में लाने का, प्रयासों, आशाओं का, धैर्य का।
कुछ लोगों के लिए सफलता मात्र धन कमाना है, मात्र धन कमाने को भी सफलता नहीं माना जा सकता। धन तो सफलता का पुरस्कार मात्र हैै। समाज में अक्सर ऐसे लोग भी देखे जा सकते हैं, जो धन-धान्य से सपन्न होने के बावजूद मानसिक रूप से संतुष्ट नहीं है। धन-दौलत होने पर भी आत्मिक रूप से संतुिष्ट नहीं तो ऐसी धन-दौलत किस काम की। सफल होने के लिए धन के साथ आत्मिक तृप्ति भी अतिआवश्यक होती है। इसे ही सफलता का नाम दिया जा सकता हैै।

लक्ष्य निर्धारण (Goal Set)

“Arise, awake and stop not till the goal is reached.”
 —Swami Vivekanad
अर्थात् उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्त होने तक मत रूका।

जीवन में सफल बनने के लिए सर्वाधिक आवश्यक है एक निर्धारित ‘लक्ष्य’। लक्ष्य किसी भी रूप में हो सकता है। यह आप पर निर्भर करता है, कि आप किस लक्ष्य को लेकर सफलता प्राप्त करना चाहते हो। लक्ष्य पूर्णतः स्पष्ट होना चाहिए। ‘लक्ष्य’ के मामले में कभी भी दोहरी मानसिकता (Double Minded) नहीं होना चाहिए। अर्थात यह न सोचें कि यदि आपने यह लक्ष्य प्राप्त नहीं किया तो आप अन्य किसी लक्ष्य के लिए प्रयास करेंगे। इस स्थिति में आप के हाथ में दो विकल्प होंगे। आप मस्तिष्क को एक स्थान पर केंद्रित नहीं रख पाएंगे। ‘लक्ष्य’ प्राप्ति की प्रक्रिया के बीच आपका मस्तिष्क दूसरे विकल्प की तरह जाएगा। पहले लक्ष्य में प्रारंभिक दौर में असफलता मिलने पर आप तुरंत दूसरे लक्ष्य की तरफ चले जाएंगे। उसमें भी आपका मन नहीं लगेगा और आप अन्य कोई तीसरा लक्ष्य चुनने का निर्णय लेंगे। ऐसा करने में मानसिक भटकाव ही उत्पन्न होता है। भटकाव में एकाग्रता भंग होती है। एकाग्रता न होने पर ‘असफलता’ ही हाथ लगती है। सदैव एक ही लक्ष्य बनाया जाए तो बेहतर रहेगा। उसका विकल्प हो तो कोई समस्या नहीं पर मन एक ओर ही लगाना चाहिए। लक्ष्य को दृश्यांकित (Visualise) करें। कल्पना करें कि यदि आपने लक्ष्य प्राप्त कर लिया तो आपकी स्थिति क्या होंगी। लक्ष्य प्राप्ति किस हद तक आपके जीवन को प्रभावित करेगी, इसे जितना हो सके सोचें। लक्ष्य निर्धारण करने के पश्चात उसे प्राप्त करने के लिए हर संभव प्रयास किए जाने चाहिए।

अभिप्रेरण (मोटिवेशन)

 लक्ष्य निर्धारण के पश्चात सफलता की दिशा में अगला कदम होता है अभिप्रेरण अर्थात मोटिवेशन। लक्ष्य का निर्धारण होने तथा उसका स्पष्ट तथा सार्थक चित्रा मस्तिष्क में स्थापित करने के पश्चात व्यक्ति को उस लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में स्वयं को मोटिवेट करते रहना चाहिये। मोटिवेशन निम्न तीन कारकों से मिलकर बना है

दृढ़ इच्छाशक्ति

‘सफलता’ और असफलता के बीच एक प्रमुख अंतर हैµदृढ़ इच्छाशक्ति का। ‘सफल’ और ‘असफल’ व्यक्ति में प्रमुख अंतर यही होता है। ‘सफल’ व्यक्ति में अपने ‘लक्ष्य’ को पाने की दृढ़ इच्छा होती है। वह इच्छा करता है, मैं इसे पाकर रहूंगा। इस दृष्टि से सफलता के लिए ‘कुछ पाने की इच्छा’ जागना परम आवश्यक है। ‘दृढ़ इच्छाशक्ति’ ही आपको लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रेरित करेगी। दृढ़ इच्छाशक्ति का अर्थ है, किसी भी परिस्थिति में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लालायित रहना। प्रत्येक पल, प्रत्येक क्षण और प्रत्येक घड़ी अपनी ‘इच्छा’ के विषय में सोचते रहना। मस्तिष्क में अपनी इच्छा पूर्ति के लिए एक स्पष्ट ‘विजन’ बनाना। इच्छा पूर्ति के लिए स्पष्ट योजना की निर्माण करके उस पर अमल करने का प्रयास करना।

सफलता के लिए परिश्रम के साथ प्रयास करें

सफलता प्राप्त करने के लिए मात्र सोचने ही काम नहीं चल जाता, इसके लिए परिश्रम के साथ प्रयास करना सर्वाधिक आवश्यक होता है। सफलता के लिए कार्य का उपयुक्त परिणाम अति आवश्यक होता है। आपका परिश्रम के साथ किया गया प्रयास उपयुक्त परिणाम उपलब्ध कराएगा। परिश्रम के साथ प्रयास न करने की स्थिति में प्रतिकूल परिणाम ही प्राप्त होंगे। परिश्रम के साथ किया गया प्रयास ही उपयुक्त परिणाम में परिवर्तित होगा। कार्य का परिणाम किसी और के हाथ में नहीं स्वयं आपके हाथ में है, आप जितने परिश्रम के साथ प्रयास करेंगे वैसा ही परिणाम प्राप्त होगा। चाय में जितनी चीनी डालोगे उतनी ही चाय मीठी बनेगी। परिश्रम रूपी चीनी के न डालने पर परिणाम रूपी मिठास किसी स्थिति में प्राप्त नहीं हो सकती है। उदाहरण के लिए किसी छात्र को परीक्षा में श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त करना है तो उसे परिश्रम के साथ प्रयास कर करना होगा।

कल्पना के पंखों से भरे सफलता की उड़ान

शाब्दिक दृष्टि से कल्पना और यथार्थ दो विपरीतार्थक शब्द है। जहां कल्पना के पंख होते है, वहीं यथार्थ का स्थिर आधार होता है। कल्पना चंचल और उन्मुक्त होती है तो यथार्थ धीर-गंभीर होता है। बावजूद इसके ‘सफलता’ की दृष्टि से दोनों शब्दों के बीच घनिष्ठ संबंध होता है। कल्पना ही यथार्थ का आधार बनती है। ‘यथार्थ’ का उद्भव कल्पना से ही होता है। कल्पना ही यथार्थ की जननी होती है। इसे एक उदाहरण के द्वारा ऐसी भी समझता जा सकता है। किसी चित्रकार की चित्रकारी या मूर्तिकार की मूर्ति यथार्थ रूप लेने से पूर्व एक कल्पना ही होती है। यहाँ एक बात समझ लेना आवश्यक है कि कल्पना को यथार्थ में बदलने के लिए विश्वास के साथ परिश्रम करना पड़ता है। विश्वास हो कि जो कल्पना आपने की है उसे आप यथार्थ रूप देने में समर्थ हैं।

सकारात्मक सोच एवं नजरिया

‘सफलता’ के लिए आपकी सोच भी उत्तरदाई है। आप सफलता के लिए अपने लक्ष्य के प्रति कैसा नजरिया रखते हैं। एक पुरानी कहावत है कि ‘मन के हारे हार है मन के जीते जीत’ अर्थात हार जीत तो बस हमारी सोच है, हम उसके प्रति किस प्रकार सोचते हैं। नकारात्मक सोचने पर जीत भी हार के समान है। सकारात्मक सोचने पर हार भी जीत के समान है। जीत हार, हर्ष, उल्लास, सफलता, असफलता सब मन से उपजती है। हमारी सोच से उपजती है। कई परिस्थितियों में व्यक्ति हार कर भी जीत जाता है। यहाँ एक कहानी का विवरण दिया जा रहा है। आप में से बहुत से लोगों ने संभवतः यह कहानी सुनी भी होगी। 

दृढ़ निश्चय

जीवन में कुछ व्यक्तिगत गुण आपके समूचे जीवन को बदल देते हैं, दृढ़ निश्चय उनमें से एक है। सफलता प्राप्त करने के लिए दृढ ़निश्चय अति आवश्यक है। सफल बनने के लिए सबसे पहला पड़ाव है ‘लक्ष्य’ निर्धारण। लक्ष्य निर्धारण के पश्चात उस लक्ष्य के प्रति दृढ़निश्चयी बनने की आवश्यकता होती है। अक्सर देखा जाता है, किसी व्यक्ति विशेष ने अपना ‘लक्ष्य’ तो निर्धारित कर लिया पर वह उसके प्रति दृढ़ निश्चयी नहीं। 

निर्णय लेना सीखें

सफलता एवं निर्णय के बीच निकट का रिश्ता है। आपका निर्णय ही आपकी सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। अधिकतर लोगों के असफल होने का सबसे बड़ा होता है उनका ठीक समय पर ठीक निर्णय न ले पाना। ‘निर्णय’ को निरंतर टालते रहना अपने में सफलता के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा बनता है। ठीक समय पर लिया गया निर्णय ही आपको मंजिल तक पहुँचाएगा। 

व्यवहारकुशल बनें

सफलता एवं मानवीय व्यवहार का गहरा रिश्ता है। व्यवहार कुशलता आपको आपकी लक्ष्य प्राप्ति में सहायक बन सकती है। व्यवहार कुशलता में व्यक्ति को विनम्र बनाना चाहिये। आप चाहे कोई व्यापारी हैं या नौकरी करते हैं, प्रत्येक स्थान पर आपकी व्यवहार कुशलता आपको उन्नति दिलाएगी। एक व्यापारी होने पर स्वयं से संबंध रखने वाले ग्राहकों के प्रति, व्यापार में कार्यरत व्यक्तियों के प्रति, वितरकों के प्रति विनम्रता दिखाए। इस विनम्रता के बल पर आप उन सबका विश्वास एवं भरोसा जीत सकते हैं। यही विश्वास और भरोसा आपको सफलता अवश्य ही दिलाएगा। 

विश्वास में छिपा सफलता का रहस्य


‘विश्वास’ स्वयं में बहुत बड़ा शब्द है। समूचा विश्व विश्वास पर ही टिका है। आज तक किसी ने भगवान को स्पष्ट रूप से नहीं देखा, बावजूद इसके दुनिया में नास्तिकों की अपेक्षा आस्तिको की सख्या कहीं अधिक है। इसका सीधा-सा कारण है, लोगों का भगवान पर ‘विश्वास’। आदिम युग लेकर आज इस अत्याधुनिक तकनीक के युग में लोगों का ‘विश्वास’ ईश्वर में बना हुआ है। चिकित्सा विज्ञान अपनी बुलंदियों पर पहुँच चुका है, बावजूद इसके आज भी बहुत से डाॅक्टर आॅपरेशन के सफल होने के बाद ‘थैंक्स गाॅड’ कहना नहीं भूलते क्योकि उन डाॅक्टरों का ईश्वर में ‘विश्वास’ है। विश्वास ही हमें ईश्वर के प्रति आस्थावान बनाता है। जिंदगी के लड़ाई में यदि कोई अकेला पड़ जाए तो उसके हृदय में एक विश्वास जागता है कि मेरे साथ यदि कोई नहीं तो क्या हुआ मेरा भगवान तो मेरे साथ है। यही विश्वास आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करता है। विश्व की सर्वोच्च सत्ता अर्थात ईश्वर ‘विश्वास’ पर ही अधारित है। विश्वास की शक्ति ही हमें ईश्वर से जोड़ती है। ईश्वर से साक्षात्कार कराती है। आप विश्वास करेंगे तभी ईश्वर का साक्षात्कार होगा। इस दृष्टि आप अनुमान लगा सकते हैं, ‘विश्वास’ कितना बड़ा शब्द है।

असफलता से कभी न घबराएं

सफलता और असफलता, जीवन के दो पहलू है। कार्य को करने से पहले उसके सफल होने न होने जैसे प्रश्न मस्तिष्क में कौंधते हैं। कुछ लोग असफलता के डर से कार्य प्रारंभ ही नहीं करते और कुछ लोग असफल होने पर उस कार्य से पलायन कर जाते हैं, घबरा जाते है। असफलता उन्हें मानसिक रूप से तोड़ देती है। जिससे उनमे एक प्रकार का भ्रम पैदा हो जाता है। वे अपने जीवन को मात्र उस असफलता तक ही सीमित समझ लेते हैं। 

सफलता के मार्ग का साथी ‘धैर्य’

कविवर गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम चरित मानस में लिखा है –
धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी। आपत काल परख यहि चारी 
अर्थात हमें विपत्ति के समय धीरज धर्म, मित्र और पत्नी–इन चारां को परखना चाहिए। यहाँ तुलसीदास ने धीरज अर्थात धैर्य को प्राथमिकता दी है। अर्थात विपत्ति के समय कभी भी धैर्य को नहीं खोना चाहिए। सफलता के लिए धैर्य की सर्वाधिक निर्णायक भूमिका होती है। कई कार्य दीर्धकाल में परिणाम देने वाले होते हैं। इसी बीच कार्य का आशानुरूप परिणाम न मिलने पर व्यक्ति विशेष का धैर्य जवाब दे चुका होता है। इससे वह व्यक्ति कार्य को बीच में ही छोड़ देता है, जिससे उसे असफलता का समाना करना पड़ता है।

आत्म-चिंतन

सफलता एवं असफलता अपने कार्य के प्रति किए गए प्रयास का परिणाम होती है। कार्य के लिए प्रत्येक स्थिति में ही प्रयास ईमानदारी के साथ किया जाता है बावजूद इसके कई बार सफलता सफलता नहीं मिल पाती, इसके कारण कुछ भी रहे हो। कारण प्रत्येक व्यक्ति के अलग-अलग हो सकते हैं। कार्य की असफलता की स्थिति में कारणों का विश्लेषण आवश्यक होता है। आप विश्लेषण अवश्य करें। उन कारणों को जानने का प्रयास करें जो अपकी सफलता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बनें। कहने का तात्पर्य हे, आप अपने कार्य की सफलता एवं असफलता का समय-समय पर विश्लेषण करते रहें।

हृदय से मुस्कराना सीखें

एक बार किसी ने काका हाथरसी से पूछा कि व्यक्ति के जीवन में कौन-कौन से सुख होने चाहिए तो काका ने अपने चिरपरिचित अंदाज में इस प्रश्न का उत्तर कुछ यूँ दिया–
पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख पास हो माया,
तीजा सुख सुलक्षणा नारी, चौथा सुख हो उत्तराधिकारी,
सुख पाँचवा वो ही पाते, हंसते-हंसते उम्र बिताते।

सफलता एवं समय-प्रबंध

सफलता एवं समय-प्रबंध के बीच गहरा रिश्ता है। समय-प्रबंध एवं विधा से, जिसके माध्यम से आप कम-से-कम समय अधिक से अधिक उपयोगी कार्य का निष्पादन कर सकते हैं। आपके पास उपलब्ध समय का यथासंभव उपयुक्त प्रयोग करना चाहिए। हाथ से निकला पैसा और बीता हुआ समय कभी भी लौट कर नहीं आता। समय बीत जाने के पश्चात तो एक पछतावा रही रह जाता है, काश मैं उस समय का सदुपयोग कर लेता तो मैं कहीं और होता। जीवन में प्रत्येक क्षण या घड़ी महत्त्वपूर्ण होता है। सफलता के लिए आपके प्रत्येक क्षण एवं घड़ी का कारगर उपयोग करना चाहिए। समय प्रबंधन के लिए आवश्यक है आप अपने एवं अन्य व्यक्ति के समय के मूल्य को समझना सीखें।

सफलता के मार्ग की सबसे बड़ी बाधादृ‘भय’

मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है, उसका ‘भय’। मनुष्य इस पृथ्वी पर उपस्थित समस्त प्राणियों में श्रेष्ठ है। बावजूद इसके भयरूपी दैत्य उसे विवश निष्किय बना देता है। मनुष्य को यह ध्यान रखना चाहिए कि भय और कुछ नहीं उसके मन की ही उपज है। भय को जन्म वह स्वयं देता है और अंत में स्वयं ही उसका दास बन जाता है। भय की दासता उसे बुरी तरह से जकड़ लेती है। उसे नकारात्मक सोचने के लिए मजबूर कर देती है। उसकी नकरात्मक सोच उसके सकारात्मक सोच को नष्ट कर देती है। उसकी कार्यक्षमता को क्षीण कर देती है। उसके आगे बढ़ने के मार्ग को अवरुद्ध कर देती है। मस्तिष्क मे विश्वास का प्रहरी ही भय रूपी शत्रु से हमारी रक्षा कर सकता है।

सुनो अपने मन की आवाज

प्रत्येक व्यक्ति में कुछ-न-कुछ प्रतिभा छिपी होती है। कुछ अच्छा गा सकते हैं, कुछ अच्छी क्रिकेट खेल सकते हैं, कुछ अच्छा भाषण दे सकते हैं, कुछ अच्छी चित्रकारी कर सकते हैं, एवं कुछ अच्छा लिख सकते हैं इत्यादि। अपनी प्रतिभा को न पहचानना हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है। कुछ बच्चे अच्छा गिटार बजा सकते हैं। गिटार बजाना उसकी प्रतिभा है लेकिन बावजूद इसके उसके अभिभावक उसे किसी दूसरे क्षेत्र में ले जाना चाहते हैं। उसकी प्रतिभा प्रोत्साहन के अभाव में दम तोड़ देती है। एक अच्छा गिटार वादक किसी दूसरे क्षेत्र में चला जाता है। उसका मन गिटार में अधिक लगता है, उस विशेष क्षेत्र में जहाँ उसके अभिभावकों न उसे डाला हैं। वह उस विशेष क्षेत्र में असफल हो जाता है और उसकी प्रतिभा प्रोत्साहन के अभाव में दम तोड़ देती है। अंत में उसके अभिभावक ही उसके आलोचक बन जाते हैं। अभिभावक ईमानदारी से सोचने का प्रयास नहीं करते कि उसकी असफलता के लिए स्वयं वे ही उत्तरदायी हाते हैं। इसके विपरीत यदि वह उसे गिटार बजाने के लिए प्रोत्साहित करते तो वह अवश्य ही सफल होता।

लक्ष्य के प्रति समर्पित बनें

सफल बनने या सफल होने या सफलता प्राप्त करने के लिए लक्ष्य के प्रति समर्पित होना पड़ता है। मात्र सफल बनने के विषय में सोच लेने से ही सफलता नहीं मिल जाती उसे पाने के लिए समर्पण भाव होना अतिआवश्यक है। समर्पण भाव से आप पूरे विश्वास और तन्मयता के साथ अपने कार्य को कर सकते है। समर्पण के लिए विश्वास की आवश्यकता होती है। सफलता के प्रति विश्वास होने पर ही समर्पण की भावना जागृत होती है। सफलता के प्रति आशान्वित होने पर ही आपमें उसके प्रति समपर्ण जागेगा। लक्ष्य का निर्धारण करने के पश्चात स्वयं में विश्वास जागाओ कि आप अवश्य सफल होंगे। विश्वास के जागृत होने पर समपर्ण भाव ही उत्पन्न हो जाएगा। जीवन में प्रत्येक स्तर पर सफलता प्राप्त करने के लिए समर्पण एवं विश्वास की आवश्यकता होती है।


आप किसी कार्य का प्रारंभ करते है और उसकी सफलता के प्रति पूर्ण आशान्वित नहीं होते उस कार्य में आप किंतु, परंतु, अन्यथा जैसे शब्द लगाते हैं तो इस स्थिति में कार्य का सफल होना संदिग्ध है। जब आपको ही विश्वास नहीं की कार्य सफल होगा या नहीं तो वह कार्य क्या सफल होगा। अपने आप को सफल बनाने या लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम स्वयं को विश्वास दिलाना होगा कि आप लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य ही करेंगे। स्वयं में विश्वास जागृत होने पर आप पूर्णतः समर्पित होकर कार्य करेंगे यहाँ कार्य की सफलता की संभावना अधिक होगी। इसके विपरीत सफलता के पहले विश्वास न होने पर आपके मस्तिष्क में संदेह उत्पन्न होगा। संदेह से, भ्रम से आपकी एकाग्रता भंग होगी। एकाग्रता के भंग होने पर आपकी कार्यक्षमता प्रभावित होगी। भ्रम की स्थिति में आपकी सफलता की संभावना संदिग्ध हो जाती है। अपने भीतर विश्वास को जगाएं, आशावादी बनें। निराशा का दामन छोड़ो। आशावादी बनने से ही विश्वास जागता है। जो मस्तिष्क को ऊर्जावान बनाता है; उत्साहित करता है। निराशा से कुंठा तथा हीनता जन्म लेती है। हीनता से हतोत्साह, हतोत्साह हमारी ‘सफलता’ के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बनता है। अगर आप निराशावादी हैं और प्रत्येक वस्तु में नकारात्मक पहलू को ही देखते हैं हो तो इस आदत को अभी बदलो। निराशावाद को त्यागों आशावाद को जीवन में उतारो फिर देखों आपका जीवन बदलता है या नहीं। निराशावाद एक स्थिर जल है जिसमें सड़ांध ओर कीड़े पड़ते है। आशावाद झरने का बहता स्वच्छ जल है। जिसकी निर्मलता मस्तिष्क के सारे मैल को धोकर आपमें विश्वास का संचार करेगी।
यदि कोई अपना व्यवसाय चलाता है, उसमें सफलता के लिए आवश्यक है कि वह अपने माल की गुणवत्ता तथा ग्राहकों के विश्वास के प्रति समर्पित रहे। ऐसा करने में उसे उसके व्यापार में अवश्य ही सफलता मिलेगी। व्यापार में माल की गुणवता एवं ग्राहकों के विश्वास के प्रति सर्मिर्पत होना अत्यंत आवश्यक है।

अवचेतन मस्तिष्क की शक्ति को पहचाने

अवचेतन मस्तिष्क मानवीय मस्तिष्क का सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है। मनुष्य के शरीर की समस्त मानवीय गतिविधियों के संचालन में अवचेतन मस्तिष्क को महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जो कुछ सामने घटित हो रहा है, उसका संचालन चेतन मस्तिष्क द्वारा होता है। सामने घटित होने वाली कुछ गतिविधियां ऐसी होती है जो नियमित रूप से होती हैं जैसे आॅफिस से घर आना या स्कूल से घर आना। 

भारतीय व्यापार जगत में मील का पत्थर: धीरू भाई अंबानी

एक पुरानी कहावत है कि ‘अकेला चना क्या भाड़ फोड़ेगा’ लेकिन हौंसले बुलंद हो और कुछ नया करने की ललक हो तो अकेला चना भी भाड़ फोड़ सकता है। बस आवश्यकता है, सोच की। भारतीय व्यापार जगत की सनसनी धीराचंद हीरानंदन अंबानी (धीरूभाई अंबानी) ने इस कहावत को गलत साबित करके दिखा दिया। एक अध्यापक के घर जन्म लेने वाले धीरू भाई अंबानी ने सीमित संसाधनांे से देश को ‘रिलायंस समूह’ के रूप में एक प्रतिष्ठित व्यापारिक संस्थान प्रदान किया जो आज न केवल भारत अपितु समूचित विश्व में भी अपनी पहचान बना चुका है।

कैसेट किंग गुलशन कुमार

ये कहानी है उस नायक की जिसका परिवार देश विभाजन के पश्चात शरणार्थी के रूप में भारत आया। जिसके पास कुछ नहीं था न सिर छिपाने के लिए जगह, न बच्चों का पेट पालने के लिए कोई रोजगार। बस थी तो सब कुछ ठीक हो जाने की उम्मीद। इसी उम्मीद के सहारे इनके पिता ने दरियागंज में सड़क के किनारेे जूस बेचने का दुकान शुरू कर दिया। यही इस परिवार के रोजगार का प्रमुख जरिया बनी। अपने कैरियर के शुरूआत गुलशन कुमार ने इसी जूस की दुकान से की। इसके पश्चात उन्होंने रिकार्डर बचने का कार्य प्रारंभ किया। यही गुलशन कुमार के जीवन का टर्निंग पाइंट बना। साइंस और टेक्नोलाॅजी में होने वाले परिवर्तन के फलस्वरूप गोल-गोल तश्तरीनुमा रिकार्डरों का स्थान-छोटी कैसेटों ने लेना शुरू किया। जहाँ एक ओर रिकार्डर लागत के कारण महंगे थे वहीं ओडियो कैसेट की लागत सस्ती पड़ती थी। रिकार्ड तथा कैसेट की लागत के अंतर का अनुमान लगाकर गुलशन कुमार ने पाया यदि भारत में भी आॅडियों कैसेट का कारोबार प्रारंभ किया जाए तो अच्छा लाभ कमाया जा सकता है। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सिंगापुर गए। वहाँ से यह आॅडियों कैसेट रिकार्ड करने की मशीन लेकर आये। तत्पश्चात इन्होंने कैसेट कारोबार आरंभ किया। इनका काम चल निकला। तीस साल की छोटी सी ही आयु में गुलशन कुमार ने वह पा लिया जिसे पाने के लिए लोग सारी जिंदगी लगा देते है।

नंद वंश का विनाशक: चाणक्य

‘चाणक्य’ ये नाम है ऐसे नायक ब्राह्मण का जिसने अपने बुद्धिकौशल एवं चातुर्य से नंद वंश जैसे दिग्गज साम्राज्य का समूल नाश कर दिया। नंद वंश और चाणक्य से किसी भी स्तर पर तुलना नहीं की जा सकती। उस समय नंद वंश को चुनौती देना किसी के वश की बात नहीं थी। फिर चाणक्य की तो बिसात ही क्या थी? उस समय नंद वंश की सुदृढ़ता को देखकर कोई उसके समूल नाश की कल्पना तक नहीं कर सकता था। और वह भी चाणक्य जैसा ब्राह्मण, ऐसा तो शायद किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। लेकिन यदि आप पूरे उत्साह के साथ दृढ़ निश्चिय कर लें तो इस दुनिया में असंभव नाम की कोई चीज नहीं। ऐसा ही चाणक्य ने कर दिखाया था। अपनी साम, दाम, दंड, भेद की नीति पर अमल करते हुए चाणक्य ने नंद वंश का अंत करके ली दम लिया।
चाणक्य का समय 350 ई. पू. से 275 ई. पूर्व तक माना जाता है। चाणक्य का जन्म कहाँ हुआ इस विषय मे विद्धानों में मतभेद है। कुछ विद्वान चाणक्य का जन्मस्थल तक्षशिला को मानते हैं जबकि कुछ विद्वानों का मत दूसरा कि इनका जन्म दक्षिण में केरल की किसी क्षेत्र में हुआ है। पर उनके जन्म स्थान के विषय उत्पन्न विवाद में न उलझ कर उसकी उपलब्धियों के विषय में जानना बेहतर होगा।

अनपढ़ तथा मंदवुद्धि से महाकवि तक

किसी भी व्यक्ति को महाकवि बनने के लिए पढ़ा-लिखा तथा बुद्धिमान होना अति आवश्यक होता है। एक मंदबुद्धि तथा अनपढ़ व्यक्ति एक दिन महाकवि बन जाए तो एक अचम्भा ही कहा जाऐगा। कोई भी कल्पना नहीं कर सकता की अनपढ़ तथा मंदबुद्धि बालक भी महाकवि बन सकता है। लेकिन कालिदास ने ऐसा कर दिखाया। कालिदास के विषय में कहा जाता है, वह अपने प्रारंभिक दिनों में मंदबुद्धि तथा अनपढ़ हुआ करते थे। अपमान एवं तिस्कार की आग ने उन्हें महाकवि बना दिया। अपमान तथा तिरस्कार ऐसी मानसिक स्थिति है जहाँ व्यक्ति सोचने पर मजबूर होता है। यह सोच ही उसे प्रेरित करती है कुछ अपने आपको सिद्व करने के लिए। ऐसा ही कुछ कालिदास के साथ हुआ। उसमें कुछ करने की ललक जागी और एक दिन वह महान विद्वान बन गया।

कभी हार न मानने वाला ‘कर्मवीर योद्धा’: लालबहादुर शास्त्री

एक बालक मेला देखने के लिए अपने कुछ मित्रों के साथ गया। मेले से वापिस आते समय उसके पास नदी पान करने के लिए नाव उतारी देने के पैसे नहीं थे। उसने इस स्थिति में अपने मित्रों से पैसे उधार लेना अपने स्वाभिमान के विरुद्ध समझा। इस स्थिति में उस बालक ने नदी नाव द्वारा पार करने के स्थान पर तैर कर ही पार करने का निर्णय लिया। वह बालक कोई और नहीं स्वतंत्र भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री थे। परिस्थितियों से हार न मानकर उनसे समझौता न करने जैसे चारित्रिक गुण ही उन्हें अन्य व्यक्तियों से अलग करते हैं। लालबहादुर शास्त्री और लिंकन दोनों को ही अपने जीवन के प्रारंभिक काल में विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा।

न्यूज पेपर हाॅकर से राष्ट्रपति भवन तक

‘सफलता’ की कोई निश्चित परिभाषा नहीं होती है। इसके लिए उपयुक्त संसाधनों का होना भी आवश्यक नहीं होता। सफल बनने के लिए बस सपने देखने पड़ते हैं, फिर उन्हें पूरा करने का प्रयास करना पड़ता है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति तथा भारत में मिशाइल कार्यक्रम के जनक डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुलकलाम भी एक ऐसे नायक है जिन्होंने सीमित संसाधनों के बीच भी ऊँचे सपने देखने नहीं छोड़े। उनका मानना है किµ”सपने देखना उन्हें दृढ़ संकल्प से सार्थक करना आपका जीवन-दर्शन होना चाहिए।“ इनके इसी जीवन-दर्शन ने उन्हें एक न्यूजपेपर हाॅकर से भारत गणतंत्र के राष्ट्रपति पद पर पहुँचा दिया। आप भी सफल बनने के लिए डाॅ. कलाम के जीवन-दर्शन पर अमल करें।

तांगा चालक से मसाल किंग तक

समय एवं परिस्थितियाँ व्यक्तियों को न जाने क्या-क्या करने के लिए मजबूर कर देती हैं। वर्तमान समय में ‘मशाला किंग’ एमडीएच के मालिक महाशय (धर्मपाल गुलाटी) ने अपने बुरे दौर में तांगा तक चलाया, मगर परिस्थितियों से किसी कीमत पर समझौता नहीं किया। अपने ‘लक्ष्य’ के प्रति अडिग रहे। कभी हार नहीं मानी कभी समझौता नहीं किया। पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने इरादों पर डटे रहें। संघर्ष को ही अपना ध्यैय बनाकर अपनी मंजिल की और बढ़ते रहे, उस मंजिल की ओर जो एक ख्वाब जैसी थी, उसे हकीकत बनाने के लिए लंबा सफर तय करना था। उस मंजिल तक पहुँचने तक न जाने कब कदम जबाव दे जाएं, पर चलने के बुलंद हौंसले ने उन्हें कामयाबी की बुलंदियों पर पहँुचा ही दिया।

बहुजन नायक कांशीराम

जनसंख्या की दृष्टि से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर-प्रदेश में जिस प्रकार बहुजन समाज पार्टी अपने दम पर सत्ता में आई वह राजनीतिक विश्लेषकों के लिए किस चमत्कार से कम नहीं। एक चमत्कार ही था मात्र 20-22 वर्ष पूर्व स्थापित पार्टी ने अपने दम पर उत्तर प्रदेश में सत्ता का सफर पूरा किया। इसके पीछे छिपे कारण को शायद ही किसी ने जानने का प्रयास किया हो। इसके पीछे थी कांशीराम जी की ‘सोच’। एक सपना जो उन्होंने देखा वह साकार हो चुका था। कांशीराम जी की सोच, उनका दृढ़ निश्चय और असफलताओं के हार न मानने के चारित्रिक गुणों के कारण ही इन्होंने ‘बहुजन-समाज’ को एकजुट करके दिखा दिया। कांशीराम जी के पास अच्छी खासी सरकारी नौकरी थी। वह चाहते तो संतुष्टि का जीवन जी सकते थे, मगर उन्हें तो आगे जाने की एक ललक थी, बहुजन समाज को एकजुट करने का सपना था। सपना कठिन अवश्य था, कांशीराम जी के आत्मविश्वास ने इस कठिन सपने को सच कर दिखाया।

अमेरिका का स्टील किंग: एंड्रयो कारनेगी

‘एंड्रयो कारनेगी’ नाम एक ऐसे कर्मठ योद्धा का जिसने सीमित संसाधनों के बीच कभी भी ऊंचे सपने देखने नहीं छोड़े। वह जानता था साधन सीमित है, लंबा सफर, राहें अंजान, रास्ता कठिन पर ‘आशा’ और ‘विश्वास’ जैसे साथियों ने उसका साथ कभी नहीं छोड़ा। मुश्किलों को मुस्कराकर सुलझाने का हुनर वह अच्छी तरह जानता था। उसके इसी जज्बे ने एक दिन ‘संयुक्त राज्य अमेरिका का स्टील किंग’ बना दिया।

विश्व में आॅटोमोबाइल क्रांति का सूत्रधार: हेनरी फोर्ड

विश्व में ओटोमोईबल के क्षेत्र में क्रांति का सूत्रपात करने का श्रेय हेनरी फोर्ड को जाता है। हेनरी फोर्ड के विषय में कहा जाता है, वे धुन के पक्के थे। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति ही उनकी सफलता का मूलमंत्र थी। वह किसी भी परिस्थिति में हार मानने को तैयार नहीं नहीं थे। उन्हें तो बस कुछ न कुछ नया करने का जूनून सवार रहता था।
हेनरी फोर्ड का जन्म 30 जुलाई, 1863 को एक एक सम्पन्न कृषक परिवार में हुआ। इनका लालन-पालन ग्रामीण परिवेश में हुआ। हालांकि परिवार सम्पन्न था पर गांव में शिक्षा की सुविधा का अभाव था। इन्होंने प्राथमिक स्तर पर जिस विद्यालय में शिक्षा ग्रहण की वह स्कूल मात्र एक कमरे में चलता था।

दुनिया में शीतल पेय का जनक: असा केंडलर

दुनिया उन्हीं को सलाम करती है जो अपना रास्ता स्वयं बनाना जानते हंै। आसा केंडलर भी एक ऐसा ही नायक है जिसने अपना ‘रास्ता’ स्वयं खोजा और दुनिया के समक्ष सफलता की नवीन मिसाल रखी। आज न केवल अमेरिका बल्कि समूची दुनिया में केंडलर द्वारा स्थापित कोका-कोला, अपनी अलग पहचान बना चुकी है। असा केंडलर ने ही दुनिया को सर्वप्रथम ‘साफ्ट डिंªक्स’ के स्वाद से अवगत कराया।

एक छोटे से गाँव से व्हाइट हाउस तक

अब्राहम लिंकन न केवल अमेरिकन अपितु समूचित दुनिया के लिए एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व हैं। लिंकन कठिन परिश्रम तथा सकारात्मक सोच का उदाहरण हैं और संभवः यही उनकी ‘सफलता’ का भी राज रहा होगा। लिंकन एक ऐसा नायक है, जिसने सीमित संसाधनों में या यूं कहें कि न के न बराबर संसाधन होने पर भी पर कभी नसीब को नहीं कोसा। इन्हें कठिन परिस्थितियों के बीच जीवन जीने का हुनर आता था।

पोलियो से ओलम्पिक गोल्ड मेडल तक

आप कभी कल्पना कर सकते है कि बचपन मे पोलियो ग्रस्त कोई बालक या बालिका कभी ओलंपिक गोल्ड मेडल जीत सकता या सकती है। पर दृढ़निश्चय एवं स्वयं पर विश्वास जैसे शब्दों पर विश्वास किया जाय तो ऐसा संभव है। बस आपमें कुछ पाने की दृढ़ इच्छाशक्ति होनी चाहिए। ‘विल्मा रूडोल्फ’ नामक बालिका एक ऐसा ही उदाहरण है जिसने पोलियो जैसी घातक बीमारी को भी धाता बताकर अपने को एक ‘धावक’ के रूप में स्थापित किया। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति ने पोलियो से हार नहीं मानी। उन्हें स्वयं पर विश्वास था ‘वह कर सकती हैं’ और इस विश्वास के दम पर अंत में वह सफल धाविका बन सकीं। विपरीत परिस्थितियाँ भी इन्हें मंजिल तक पहुँचने से न रोक सकीं। जीवन-पथ के उबड-खाबड़ रास्ते उस पर पोलियों जैसे घातक रोग रूपी वियाबान भी उनके साहस को मिटा न सका। उनके उत्साह एवं विश्वास के आगे उसे भी नतमस्तक होना पड़ा अर्थात हारना पड़ा।

बल्ब की रोशनी से दुनिया को रोशन करने वाला नायक: थामस एडीसन

दुनिया को ‘बल्ब’ के प्रकाश से प्रकाशित करने का श्रेय जाता है, थामस एडिसन को। आज बे-शक बल्ब निर्माण में कितनी ही नई तकनीक प्रयोग की जाने लगा। मगर बल्ब के क्षेत्र में क्रांति का सूत्रपात्र करने वाला महानायक ‘थामस’ एडीसन ही था। अपने दृढ़निश्चय और कभी भी हार न मानने की आदत ने ही ‘थामस’ एडिसन को महान बना दिया। एडीसन हार बनाने वालों के लिए सबक, तथा विजेताओं के लिए प्रेरणा की जीती जागती मिसाल है।

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इंटरनेट के इस दौर में पारंपरिक शिक्षा अर्थात स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी से हायर एजुकेशनल डिग्रीज हासिल करने के अलावा भी विद्यार्थी विभिन्...