दृढ़ इच्छाशक्ति

‘सफलता’ और असफलता के बीच एक प्रमुख अंतर हैµदृढ़ इच्छाशक्ति का। ‘सफल’ और ‘असफल’ व्यक्ति में प्रमुख अंतर यही होता है। ‘सफल’ व्यक्ति में अपने ‘लक्ष्य’ को पाने की दृढ़ इच्छा होती है। वह इच्छा करता है, मैं इसे पाकर रहूंगा। इस दृष्टि से सफलता के लिए ‘कुछ पाने की इच्छा’ जागना परम आवश्यक है। ‘दृढ़ इच्छाशक्ति’ ही आपको लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रेरित करेगी। दृढ़ इच्छाशक्ति का अर्थ है, किसी भी परिस्थिति में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लालायित रहना। प्रत्येक पल, प्रत्येक क्षण और प्रत्येक घड़ी अपनी ‘इच्छा’ के विषय में सोचते रहना। मस्तिष्क में अपनी इच्छा पूर्ति के लिए एक स्पष्ट ‘विजन’ बनाना। इच्छा पूर्ति के लिए स्पष्ट योजना की निर्माण करके उस पर अमल करने का प्रयास करना।


नंदकुमारों द्वारा चाणक्य का अपमान किए जाने पर चाणक्य में अपने अपमान का बदला लेने की ‘दृढ़ इच्छा’ जागृत हुई। इस दृढ़ इच्छा ने ही उसे नंदवंश से प्रतिशोध लेने के लिए प्रेरित किया। चाणक्य हांलाकि कमजोर था, मगर उसकी इच्छाशक्ति दृढ़ थी। नंदवंश के समक्ष चाणक्य का कोई अस्तित्व नहीं था। परंतु उसने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति को क्षीण नहीं होने दिया। इस दृढ़ इच्छाशक्ति के परिणामस्वरूप ही उसकी चंद्रगुप्त से मुलाकात हुई। उस मुलाकात के परिणामस्वरूप ही इतिहास में मौर्यवंश की उत्पत्ति हुई। चाणक्य की दृढ़ इच्छाशक्ति सेे ही नंदवंश का पतन तथा मौर्यवंश का उद्भव संभव हुआ। चाणक्य की दृढ़ इच्छाशक्ति ने ही उसे इतिहास पुरुष बना दिया। आज हजारों वर्ष बाद भी चाणक्य कर्त्तव्य निष्ठा एवं प्रबल इच्छाशक्ति का एक उदाहरण बना हुआ है।
सफल व्यक्तियों का भाग्य ने भी साथ दिया है, क्योंकि उन्होंने सर्वप्रथम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की दृढ़ इच्छाशक्ति जागृत की। उन्होनें सपने देखें और फिर उन्होंने सुनियोजित योजना बनाकर सपनों को पूरा करने का प्रयास किया। उन्हें अपना सपना सच होने का पूर्ण ‘विश्वास’ था। इस प्रकार की रणनीति ने ही उनके सफल बनने के लिए जमीन तैयार कर दी। अंग्रेजी में एक कहावत है, 'God help those, those help themselves'   भगवान उनकी ही सहायता करता है, जो स्वयं अपनी सहायता करने में सक्षम होते हैं। भाग्य भी तब ही आपका साथ देगा, जब आप स्वयं कुछ पाने की ‘इच्छा’ करेंगे। जब तक ‘इच्छा’ नहीं करेंगे, तब तक भाग्य कैसे आपका सहारा बनेगा। भाग्य के सहारे जीवन व्यतीत करने से सफलता नहीं मिलती, हमें इसके लिए कर्मों को प्राथमिकता देनी होगी।
दसवर्षीय एक बालक ने अपने पिता को रोते हुए देखा। उसने जानने का प्रयास किया, आखिर पिता क्यों रो रहे हैं? उसे ज्ञात हुआ उनके देश की फुटबाल टीम विश्व-कप फाइनल में गई है। उसी समय बालक में अपने देश को विश्व-कप फुटबाल में विजयश्री दिलाने की दृढ़ इच्छाशक्ति जागी। इस दृढ़ इच्छाशक्ति ने उसमें विश्वास जगाया। यह विश्वास उस बालक की सफलता का राज बना। वह बालक कोई और नहीं फुटबाल के महानतम् खिलाड़ी पेले थे, जिसने न केवल एक बार अपितु तीन बार ब्राजील को फुटलबाल विश्व कप दिलाया। पिता का रोते देखने पर उस बालक में अपने देश को फुटबाल का विश्व-कप दिलाने की जो इच्छा जागी वह इच्छा उसके मस्तिष्क में दृढ़ हो गई, यही दृढ़ इच्छा ही उसकी सफलता का आधार बनी। 
ब्रह्मांड में अवसरों की कमी नहीं, कमी है तो उन्हें पाने की ‘इच्छा’ की है। संसार में खुशहाली, वैभव, जमगाहट, आशाएँ अभिलाषाएँ, उमंगे इत्यादि हैं कहने का तात्पर्य हैµदुनिया रंग-रंगीली है। इस रंग रंगीली दुनिया को ‘सफलता’ के प्रकाश से प्रकाशित करने के लिए, इस दुनियाँ के रंगों को पाने की ‘दृढ़ इच्छा ’ जगानी होगी। स्वयं को सदैव अपने लक्ष्य के प्रति ‘सचेत’ रखना होगा। वैभव और खुशहाली को प्राप्त करने के लिए आशाओं और अभिलाषाओं को अपना सहचर बनाना ही होगा। दुनिया गोल है इसका छोर नहीं है, इसी प्रकार की सफलताओं का भी कोई छोर नहीं होता, यह आपके ऊपर है, आप किस हद तक इसे छूने का प्रयास करते हैं।
‘लक्ष्य’ का निर्धारण करने के पश्चात उसे प्राप्त करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति रखनी पड़ेगी। मान लीजिए आपने एक वर्ष में एक निर्धारित मात्रा में धनार्जित करने का लक्ष्य निर्धारित किया। अगले दिन ही ‘लक्ष्य’ को भूलकर आप अन्य कार्य में लग जाते हैं। अपने ‘लक्ष्य’ को निर्धारित करने के पश्चात आपको उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति जगानी होगी। तत्पश्चात उसे प्राप्त करने के लिए एक निश्चित योजना बनाकर, उस पर अमल करते हुए लक्ष्य को प्राप्त के लिए समुचित कार्यक्षमता का प्रयोग करना होगा। ‘लक्ष्य’ प्राप्त करने के लिए आपको सदैव लालायित होना पड़ेगा। ‘लक्ष्य’ का विकल्प ढूढ़ने का प्रयास कभी मत करो, विकल्प ढूढ़ने की स्थिति में लक्ष्य प्राप्त करने की आपकी दृढ़ इच्छाशक्ति कम हो जाती है। आपका मस्तिष्क किसी अन्य लक्ष्य की तरफ भटक जाता है। जो लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग से आपको भटका सकता है। अपना निर्धारित लक्ष्य प्राप्ति के प्रति सदैव अडिग रहो।
अपनी इच्छा को वास्तविकता में बदलने का प्रयास करो। जो कहो उसे करके दिखाने का हर संभव प्रयास करो। तन-मन-धन से ‘लक्ष्य’ प्राप्त करने की दिशा में कार्य करो। सफलता के लिए कुछ पाने की एवं कुछ करने की इच्छा जगानी पड़ेगी। कुछ पाने की इच्छा करने से ही आप सफल नहीं बन सकते है, इसके लिए हर संभव प्रयास करना होगा। अपनी इच्छा को परिणामों में बदलने के लिए जुटना ही होगा। आलसी मत बनो, आलस्य सफल होने की इच्छा को खत्म कर सकता है।
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद ने, हॉकी स्टिक सेना में नौकरी करने के पश्चात पकड़ी। वहीं उनमें हॉकी का खिलाड़ी बनने की ‘दृढ़ इच्छाशक्ति’ जागी। उनकी इस इच्छा ने ही उन्हें हॉकी का जादूगर बना दिया। एक ऐसा व्यक्ति जिसने बचपन में कभी हॉकी नहीं खेली और अपनी वयस्क अवस्था में उसे खेला। बचपन में इसका कोई प्रशिक्षण नहीं लिया, बावजूद इसके पूरी दुनिया में उन्होंने हॉकी के खेल मे स्वयं को महानतम् बना लिया। इसके पीछे थी ध्यान चंद की ‘दृढ़ इच्छाशक्ति’ जिसने उन्हें हॉकी का खिलाड़ी बनने के लिए प्रेरित किया। बाल-अवस्था तथा वयस्कावस्था के बीच न मिलने वाली बुनियाद को स्वयं की सफलता के बीच की बाधा नहीं बनने दिया।
विजेता या सफल व्यक्तियों में जीत या सफलता के लिए दृढ़-इच्छाशक्ति थी। उनमें लक्ष्य प्राप्त करने की ललक थी। ‘विल्मा रोडल्फ’ एक पोलियोग्रस्त बालिका थी। पर उसकी दृढ़ इच्छा थी विश्व की श्रेष्ठतम् धाविका बनने की। अपनी ‘दृढ़ इच्छाशक्ति’ के बल पर उसने पोलियो जैसी घातक बीमारी को धता बताते हुए ओलम्पिक गोल्ड मैडल जीता वह विश्व की श्रेष्ठतम धाविका बन गई।
 अपना ‘लक्ष्य’ प्राप्त करने के लिए आपको हर-पल, हर समय उस लक्ष्य को प्राप्त करने के विषय में सोचना होगा। यह मत सोचो कठिन है। यह सोचों यह कठिन अवश्य है पर असंभव नहीं, मैं इसे प्राप्त करने के लिए हर संभव प्रयास करूंगा और इस असंभव लक्ष्य को ‘संभव बनाऊँगा’। पीछे की ओर मत, सोचो आगे की ओर सोचो। आगे बढ़ने के लिए ललक पालो। भीड़ में चलने की अपेक्षा भीड़ का नेतृत्व करने का प्रयास करो। मत सोचो की फलां ने किया उसका क्या हुआ सोचो की आप सफल बने तो क्या होगा? लक्ष्य प्राप्त करने की दृढ़ इच्छाशक्ति आपके जागृत करने से ही होगी।
पहले अपना ‘लक्ष्य’ निर्धारित करो फिर उसे प्राप्त करने के लिए पक्का इरादा करो। उसे प्राप्त करने के लिए समय का निर्धारण करो, उसे प्राप्त करने के लिए एक निश्चित योजना की रूपरेखा तैयार करो। उसे अमल में लाने का प्रयास करो। अपने ‘लक्ष्य’ को अपने अवचेतन मस्तिष्क में स्थापित करो कि मुझे इस लक्ष्य को प्राप्त करना है। मैं इसे प्राप्त करने में सक्षम हूँ। स्वयं को प्रेरित करते रहो। इस तरह से आपके मस्तिष्क में ‘लक्ष्य’ को प्राप्त करने की दृढ़ इच्छाशक्ति जागृत होगी। जो ‘लक्ष्य’ प्राप्ति में सहायक बनेगी। अपने शब्द कोश से असंभव जैसे नकारात्मक वाक्यों को हटा दो। आप अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में ही सोचो। अपने के प्रति सचेत रहो। उस लक्ष्य का दृश्यांकन ;टपेनंसपेंजपवदद्ध करो कि यदि आपने लक्ष्य प्राप्त कर लिया तो आप किस स्थिति में हांगे? लक्ष्य को कल्पना में लाओ। स्पष्ट रूप से दृश्यांकन ;अपेनंसपेमद्ध करके आपका मस्तिष्क उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित होगा। उदाहरण के लिए यदि आपने लक्ष्य निर्धारित किया कि आप साल में एक निर्धारित मात्रा में धन अर्जित करोगे, तो इस स्थिति में आपको अपने मस्तिष्क में दृश्यांकन ;टपेनंसप्रमद्ध करना होगा कि आपने यह अर्जित कर लिया और आप उस धन से उस वस्तु को अर्जित कर रहे हैं, जो आपको चाहिए। इस स्थिति में आपका मस्तिष्क आपको लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में प्रेरित करेगा। यह प्रेरणा ही एक दिन आपकी दृढ़ इच्छाशक्ति बनेगी।
कोई भी लक्ष्य असंभव अवश्य हो सकता है पर नामुमकिन नहीं होता, असंभव को संभव बनाने के लिए आपको स्वयं में दृढ़ इच्छाशक्ति की जगानी होगी। दृढ़ इच्छाशक्ति आपके मस्तिष्क की ऐसी स्थिति है, जहाँ अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की आप में तीव्र उत्कंठा होती है। समय-समय पर मस्तिष्क के आवेगों को आंदोलित करने पर आप लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में समूचित कार्य क्षमता का प्रयोग कर सकेंगे। यह एक या दो दिन का काम नहीं है और न ही सोचने मात्रा से ऐसा संभव हो सकता है। इसके लिए आपको अभ्यास करना होगा। संस्कृत के एक श्लोक अनुसार प्रयत्न करने से ही कार्य पूरे होते हैं, मन की इच्छा से नहीं, जिस प्रकार सोए हुए सिंह के मुख के कभी भी बिना प्रयत्न किये हिरण प्रवेश नहीं कर सकता। शेर को अपनी भूख मिटाने के लिए, हिरण का शिकार करने का प्रयास करना होता है। वह उसके लिए निश्चित योजना, बनाता है, उस पर अमल करता है, शिकार के समय शेर कभी आलस्य नहीं दिखाता। वह सदैव सचेत एवं चौकन्ना रहता है। उसकी जरा-सी भूल उसके शिकार को निकलने का मौका दे सकती है। आपकी भी अपने ‘लक्ष्य’ का शिकार करने के लिए शेर की तरह योजना बनानी पड़ेगी, आलस्य को त्यागना पड़ेगा। सदैव सचेत एवं चौकन्ना रहना पड़ेगा अन्यथा आपका शिकार भी आपके हाथ से निकाल जाएगा। अर्थात आप अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाएंगे।
 स्वयं और एक सफल व्यक्ति के बीच तुलना करने पर आप पाएंगे की सफल व्यक्ति में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की दृढ़-इच्छाशक्ति थी। कभी आपने उन मित्रों के विषय में सोचा है, जो आपसे कम शिक्षित या योग्य होने के बावजूद कार में घूमते हैं। ऐसा क्यों है? आप जरा उनके विचारों पर उनकी सोच पर ध्यान दें तो आप पाएंगे की उनमें उस कार के प्रति दृढ़ इच्छाशक्ति थी। इसके विपरीत आपने तो मात्रा यह सोचकर की आखिर हम कहाँ कार ले पाएंगे, अपने मन को मना लिया। मन को मनाने के कारण आपकी ‘इच्छा’ खत्म हो गई। आपमें तथा आपके मित्रा की कार में अंतर केवल इच्छा का है। आपकी छोटी नौकरी ने आपकी सोच को भी सीमित कर दिया। लक्ष्य प्राप्त करने की अपनी इच्छाओं को दबाओ नहीं उन्हें बढ़ाओ। जब तक आप उस ‘लक्ष्य’ तक न पहुँच जाए। अपने हौंसलों को बुलंद करो, इच्छाओं को पंख लगाओ, फिर देखों सफलता आपके कदमों को छुएगी। लक्ष्य से घबराओ मत, लक्ष्य से हटो मत, लक्ष्य पर डटे रहो जब तक सफलता नहीं मिल जाती।
एडिसन में दुनिया को बल्ब से रोशन करने की दृढ़ इच्छाशक्ति थी। लक्ष्य था, साधन सीमित थे। पर उसने हिम्मत नहीं हारी। उसने अपने सपने को पूरा करने के लिए लगभग दस हजार बार असफल प्रयास किया। हर बार नाकामी ही उसके हाथ लगी, नाकामी उसकी हिम्मत को न हरा पाई। उसे पता था कि असफलता के भीतर ही सफलता के बीज अंकुरित होते हैं। उसने पुनः और अधिक दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ प्रयास किया। आखिर कब तक नाकामी उसे यूँ हरा पाती। अंत में उसे सफलता मिलनी ही थी। लगभग 10,000 बार प्रयत्न असफल रहने के पश्चात एडिसन को सफलता मिली। इसके पीछे प्रमुख कारण था एडिसन की दृढ़ इच्छाशक्ति का जिसने उसे प्रत्येक पराजय के बाद पुनः प्रेरित किया। एडिसन की इसी दृढ़ इच्छाशक्ति के परिणामस्वरूप ही समुचित विश्व बिजली के बल्ब से रोशन हो सका। सोचो अगर एडिसन में दृढ़ इच्छाशक्ति न होतो तो आज भी दुनिया मोमबत्ती या लैम्पों के सहारे ही जी रही होती। वास्तव में सभ्यता को ‘विद्यतु बल्ब’ से प्रकाशित करने का श्रेय सिर्फ और सिर्फ एडिसन को ही जाता है।
आप भी सफलता प्राप्त करने के लिए अपने में एडिसन जैसी दृढ़ इच्छाशक्ति जगाए। आप की किस्मत का ‘फ्यूज बल्ब’ अवश्य ही जगमगाएगा। संभवत आपकी कामयाबी से भी दुनिया रोशन हो जाए। इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की आश्यकता है। दृढ इच्छाशक्ति का करंट को अपने मस्तिष्क में दौड़ना होगा तभी सफलता मिलेगी।
सफलता सदैव खुले मस्तिष्क वालों को ही मिलती है। अपने मस्तिष्क को बंद मत करो, उसे नए विचारों के लिए खोलों। सपने देखना मत छोड़ो। सपनों को वास्तविकता में परिवर्तित करने का कौशल सीखो। आज आप दुनिया को जिस रूप में देखते हो वह सपने को वास्तविकता में परिवर्तित करने का परिणाम है। फोर्ड ने सपना देखा था बिना घोड़ों के गाड़ी दौड़ाने का, आरंभ में तो लोगों ने उसे मात्रा कपोल कल्पना ही मान हंसी में उड़ा दिया था। पर फोर्ड ने हिम्मत नहीं हारी अंत में उसने कार बना कर ही दिखाई। 
राइट (Wright) बंधुओं ने भी देखा, आसमान में पंख फैला कर उड़ने का लोगों की निगाह में यह मात्रा ‘हवाई किला’ था, जिसमें कल्पनाओं के पंख तो थे वास्तविकता का आधार नहीं था। राइट बंधु भी अपनी हट के पक्के थे। उन्हें विश्वास था कि अपने हौंसलों पर अपनी आशाआें पर। एक दिन इन्होंने अपने सपने को वास्तविकता बदलकर दिखा ही दिया उनका सपना ‘हवाई जहाज’ के आविष्कार के रूप में साकार हुआ।
इसी प्रकार के करोलबाग, नई दिल्ली के छोटे से आफिस में बैठकर कांशीराम जी ने ‘बहुजन समाज को एकजुट’ करने का सपना संजोया। करोल बाग का छोटा-सा आफिस और भारत जैसे विशाल देश में ‘बहुजन समाज’ को एकजुट करना। अपने आपमें एक असंभव सा लक्ष्य था। लेकिन कांशीराम जी ने हिम्मत नहीं हारी और एक दिन बन गए बहुजन नायक कांशीराम। उनकी पार्टी देश के सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्य में अपने दम पर सत्ता में आई। 
उपरोक्त सब उदाहरणों में सफलता की दृष्टि से सबसे आवश्यक पहलू था दृढ इच्छाशक्ति। कार का नया मॉडल बनाने के लिए फोर्ड की और ‘बहुजन समाज को एक जुट’ करने में कांशीराम की दृढ़ इच्छाशक्ति। जिसके बल पर वह बहुजन नायक बन गये। आप भी ऐसा कुछ कर सकते हैं, इसके लिए आवश्यकता है तो बस सपनों को वास्तविकता में बदलने वाली दृढ़ इच्छाशक्ति की।
अपने में कुछ करने की कुछ बनने की, दृढ़ इच्छाशक्ति जागृत करो। सपने को वास्तविकता में परिवर्तित करने के लिए आलस्य छोड़कर महत्वाकांक्षी बनों। आपके जीवन में स्वयं ही परिवर्तन आएगा। नकारात्मक और नीरस विचारों को हृदय से निकाल फेंको। कुछ अलग हटकर करने की ठानो। ‘सफलता’ आपकी मुट्ठी में खुद-ब-खुद आ जाएगी।
किसी वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा करना तथा उसे प्राप्त करने के लिए तैयारी कराना दोनों ही स्थिति में अंतर है। आप वस्तु तब तक नहीं प्राप्त कर सकते हैं, जब तक उसे प्राप्त करने का आपमें भरोसा न हो। मान लें आप ‘किराए के मकान’ में रहते हैं। आप स्वयं का मकान लेना चाहते हैं। आपकी आय कम है। कम आय के कारण आपमें यह विश्वास नहीं जागेगा की आप ‘स्वयं का मकान’ ले सकते हैं। आप मकान लेना चाहते हैं, तो आपको स्वयं में विश्वास जगाना होगा कि आप मकान लेकर ही रहेंगे, विश्वास से ही इच्छा जागेगी। विश्वास न होने की स्थिति में आपमें इच्छा जागृत ही नहीं हो सकती। इच्छा नहीं होगी तो उसकी पूर्ति नहीं होगी, इस स्थिति में पूर्ति के लिए प्रयास भी नहीं करेंगे। आप किराये के मकान में ही रहते रहेंगे। ‘विश्वास’ कुछ नहीं एक ‘मानसिक’ स्थिति है। स्वयं की मानसिक रूप से तैयार करो आप-ऐसा करने में सक्षम हैं। ऐसा होने पर ही आप में ‘आमुक’ वस्तु प्राप्त करने की दृढ़ इच्छाशक्ति जागेगी और इसे प्राप्त करने का भरसक प्रयास करेंगे।
दृढ़ इच्छाशक्ति से तात्पर्य है, अपनी सोच को उस स्तर तक ले जाना जहाँ आप अपने ‘इच्छित’ लक्ष्य को प्राप्त करने से कम पर किसी भी स्तर पर समझौता न किया जाए। आपको तो बस अपने ‘लक्ष्य’ को ही प्राप्त करना है। लक्ष्य को अपने ‘अवचेतन’ मस्तिष्क में बैठा लो। यहाँ अगर उर्दू की शब्दावली का प्रयोग किया जाए तो अपने ‘लक्ष्य’ की पूर्ति के लिए जुनूनी बनो।
बहुत से युवा भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयार करते हैं। उन्हें इसमें सफल होना है तो उन्हें इसके लिए जुनूनी बनना पड़ेगा। उन्हें अपने मस्तिष्क में बैठाना होगा कि वे इससे कम में समझौता नहीं कर सकते। ऐसी सोच ही उन्हें अथक प्रयास के लिए प्रेरित करेगी। इस प्रकार जो जिस ‘लक्ष्य’ को प्राप्त करना चाहता है, उन्हें इसी प्रकार करना होगा। ‘सफल’ या ‘विजेता’ बनने के लिए ‘दृढ़इच्छाशक्ति’ अति आवश्यक है। इस बात को पल्लू में बांध कर रख लो। देखना एक दिन जीत आवश्यक ही आपकी होगी।

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