सकारात्मक सोच एवं नजरिया

‘सफलता’ के लिए आपकी सोच भी उत्तरदाई है। आप सफलता के लिए अपने लक्ष्य के प्रति कैसा नजरिया रखते हैं। एक पुरानी कहावत है कि ‘मन के हारे हार है मन के जीते जीत’ अर्थात हार जीत तो बस हमारी सोच है, हम उसके प्रति किस प्रकार सोचते हैं। नकारात्मक सोचने पर जीत भी हार के समान है। सकारात्मक सोचने पर हार भी जीत के समान है। जीत हार, हर्ष, उल्लास, सफलता, असफलता सब मन से उपजती है। हमारी सोच से उपजती है। कई परिस्थितियों में व्यक्ति हार कर भी जीत जाता है। यहाँ एक कहानी का विवरण दिया जा रहा है। आप में से बहुत से लोगों ने संभवतः यह कहानी सुनी भी होगी। 


बाबा भारती नामक एक बूढे़ व्यक्ति के पास एक बहुत बढ़िया घोड़ा था। वह उस घोड़े से बहुत प्यार करते थे। खड़ग सिंह नामक व्यक्ति उस घोड़े को हर हाल में प्राप्त करना चाहता था। उसने घोड़े को प्राप्त करने के लिए एक युक्ति अपनाई। वह एक दिन पैरों से विकलांग व्यक्ति का रूप धारण करके बाबा भारती के पास गया। बाबा भारती के पास जाकर उसने कहाµमैं पैरों से असमर्थ हूँ आप मुझे अपना घोड़ा दे देंगे, जिससे मैं अपना कार्य पूरा कर आऊँ। बाबा भारती ने अपने निश्छल मन से घोड़ा खड़ग सिंह को दे दिया। घोड़े को तेजी से दौड़ते हुए खड़ग सिंह कहने लगा, मैं पैरो से असक्षम नहीं हूँ, मैंने तो सिर्फ घोड़े को प्राप्त करने लिए यह नाटक रचा था। 
बाबा भारती ने कहाµयह तो ठीक है पर इस बात को किसी को बताना नहीं अन्यथा लोग विकलांग व्यक्तियों पर विश्वास करना छोड़ देंगे। इस प्रकार अपनी उदारता एवं सोच से बाबा भारती हारकर भी विजेता बन गए और खड़ग सिंह घोड़ा पाकर भी हार गया। यह तो एक उदाहरण है, जीवन में कैसी भी परिस्थितियाँ आए, अपनी सोच मत बदलो न ही कभी हिम्मत मत हारो। सफलता स्वयं ही आपके कदमों में आएगी। अपनी सोच को सकारात्मक रखें अपने नजरिये को मत बदलो सकारात्मक सोच हमारी मानसिक स्थिति है। सदैव किसी तथ्य के सकारात्मक पक्ष को ही देखो।
गिलास आधा खाली है, या आधा भरा यह आपके नजरिये पर निर्भर करता है। आधा भरा देखना आपके सकारात्मक नजरिए को दर्शाता है। हमें हर पल अपने नजरिये को सकारात्मक बनाना चाहिए। सफलता एवं सोच के बीच गहरा संबंध है। कार्य करने से पूर्व ही नकारात्मक सोच लेने से उस कार्य में सफलता की संभावना संदिग्ध हो जाती है। उसमे सफल होने की संभावना भी कम हो जाती है। आपमें वास्तव में सफल होने की ललक है तो आपको अपनी सोच में बदलाव लाना ही होगा। आपकी सोच की आपके जीवन में परिवर्तन ला सकती है। सोच बदलने पर ही जीवन बदलेगा। आपकी सोच की आपकी सफलता का रास्ता तय करेगी।
एक घर में एक ही परिस्थितियां में दो बच्चों का लालन-पालन होता है। दोनों की उत्पत्ति भी एक ही कोख से होती है। दोनों को समान परिवेश मिलता है। लेकिन एक उन्नति कर लेता जबकि दूसरा फिसड्डी रह जाता है। ऐसा क्यों होता है, इसके पीछे सीधा सा तर्क है, एक ने ‘उन्नति’ के विषय में सोचा और दूसरे ने अपने मस्तिष्क में धारणा बना ली कि इन परिस्थितियों में उसके लिए सफलता प्राप्त करना या ऊँचें सपने देखना ठीक नहीं। वह फिसड्डी रह जाता है। इसके विपरीत दूसरे ने कुछ हटकर सोचा। उसने सोचा चाहे परिस्थितियां जैसी भी हों मुझे तो आगे जाना ही है। उसे स्वयं पर विश्वास था वह सफल हो गया। दोनों में अंतर सिर्फ ‘सोच’ का था। जिसने परिस्थितियों से समझौता करना उपयुक्त समझा और अपनी इच्छा को भी सीमित दायरे में रखा वह फिसड्डी बन गया और जिसने विपरीत परिस्थितियों को चुनौती दी, हार न मानने की ठान ली, लक्ष्य प्राप्त करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई वह आगे गया।
कुछ लोग इसके पीछे किस्मत को कारण मानते हैं। शायद उपरोक्त वर्णित उदाहरण में जो व्यक्ति असफल या फिसड्डी हुआ वह भी इसके पीछे किस्मत का ही तर्क दे। इस प्रकार के तर्क आपको सीमित दायरे में सोचने के लिए मजबूर कर देते हैं। आप इस प्रकार के तर्कों से स्वयं को बाहर निकाले। किस्मत दो जगह लिखी होती है, एक हाथ की लकीरों में दूसरे माथे पर। इसके पीछे छिपे तर्क को जानने का प्रयास शायद किसी ने नहीं किया किया। इसका सीधा-सा तात्पर्य है। आपका माथा और हाथ दोनों ही आपकी किस्मत को बनाने और बिगाड़ने वाले हैं। आप माथे अर्थात मस्तिष्क से सोचें, योजनाएँ बनाएं, उन्हें पूरा करने के लिए विश्वास जगाएं, उन्हें प्राप्त करने की दृढ़ इच्छाशक्ति जगाओ हाथों से अपनी सोच एवं योजनाओं पर अमल करने का प्रयास करें। फिर देखों आपका भाग्य कैसे नहीं बदलता।
आपकी सोच ही कार्य के प्रति आपको ऊर्जावान बनाती है। सकारात्मक सोच मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है, इसके विपरित नकारात्मक सोच नकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। नकारात्मक ऊर्जा के साथ कार्य करने वाला अपने को हताश एवं निराश पाता है। हताशा और निराशा ही सफलता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बनती है। आप जरा सोचकर देखें जब भी कार्य करने से पहले ही मस्तिष्क को ये संदेश दे दिया जाता है, मैं सफल नहीं हो सकता तो ऐसी स्थिति में क्या आप सफल हुए हैं। नहीं, कदापि नहीं। सफल होने से पहले सफलता के साथ सोचना सीखो यह सोच ही आपके जीवन में परिवर्तन ला सकती है।
आप जैसा सोचेंगे उसके परिणाम भी वैसे ही प्राप्त होंगे। एक कहावत होती है, जैसा बोओगे तैसा कटोगे, मन में सफलता पाने के बीज रोपित करेंगे तो उसके परिणाम सफलता के रूप में प्राप्त होंगे। आप असफलता के लिए विषय में सोचकर सफलता पाने के प्रयास करेंगे तो किसी भी स्थिति में आपको सफलता नहीं मिल सकती है। आपकी सोच में तो असफलता बसी हुई है, तो परिणाम सफलता के रूप में कैसे प्राप्त होगा? जैसा संदेश आप अपने अवचेतन मस्तिष्क को दोगे, वैसा ही परिणाम आपको प्राप्त होगा। अमीर बनना चाहते है, तो पहले अमीर बनने के विषय में सोचें फिर अमीर बनने के प्रयास करें। 
कुछ पाने के लिए सबसे पहले मानसिक स्तर पर दृढ निश्चय करो, कि आप इसे प्राप्त कर सकते है। किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सकारात्मक विचारों का आना परम आवश्यक है। विचार की आपकी प्ररेणा बनेंगे। विचार ही आपकी सफलता का आधार बनेंगे। किसी लक्ष्य को पाने से पूर्व ही मन धारणा बना लेना कि मैं इसे नहीं कर सकता। इस स्थिति में आप कभी भी सफलता प्राप्त नहीं कर पाएंगे। व्यक्ति स्फूर्तिवान तथा ऊर्जावान तन से नहीं मन से होता है। आपका मन सोचता है µआप ऊर्जावान एवं स्फूर्तिवान है, तो आप वाकई ऊर्जावान स्फूर्तिवान बन सकते है। 
आपके कार्य की कुशलता आपकी सोच पर ही निर्भर करती है। इच्छापूर्ति के लिए उत्साह तथा परिश्रम से कार्य करने पर ही आपकी जीत का मार्ग प्रशस्त होगा। नकारात्मक विचार तथा सोच आपको हतोत्साहि करेंगे, आप निष्क्रिय होकर अकर्मणता से करेंगे। इस स्थिति में आप कुछ भी परिणाम प्राप्त नहीं कर सकते।
सफलता के लिए सोच एवं खयाली पुलाव बनाने के बीच अंतर को समझ लेना अतिआवश्यक है। महज खयाली पुलाव बना लेने से ही सफलता नहीं प्राप्त होती। सोच पर अमल करने की भी आवश्यकता होती है। खाली बैठे-बैठे सोचना व्यर्थ ही होता है। इसके और सफलता के बीच कोई संबंध नहीं होता। सफलता के लिए उस संबध को जान लेना अति आवश्यक है। ‘खाली खयाली पुलाव बनाना’ समय बर्बाद करने का एक तरीका होता है। सफलता के लिए इस प्रकार की आदतों को छोड़ दो। अपने खाली समय को किसी रचनात्मक कार्य में लगाओ। जीवन बहुत बहुमूल्य है, प्रत्येक क्षण आपके लिए महत्वपूर्ण है। इस दृष्टि से जीवन के प्रत्येक क्षण का उपयोग करो। खाली सोचने में अपने बहुमूल्य समय व्यतीत न करें, स्वयं को मोटिवेट करें। देखिये एक दिन सफलता आपके कदमों को चूमेगी। बस आवश्यकता है, तो सकारात्मक सोच की। सफलता के लिए सोच को बदलना होगा। आपकी सोच ही आपको उन्नति के शिखरों पर पहुँचा सकती है। 
हमारे मानसिक नजरिए से ही हमें सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे। परिणाम का सकारात्मक चित्र खींचने से उसे इच्छित परिणाम प्राप्त होंगे। नकारात्मक परिणाम के विषय में सोचने से नकारात्मक परिणाम प्राप्त हांगे। आपने वार्तालाप में सदैव ”मैं आवश्य ही सफलता प्राप्त करूंगा“ इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग करें। बाधाओं एवं कठिनाईयों से कभी मत घबराएं। इनका सामना करना सीखें। देखना आपके के जीवन में कुछ-न-कुछ परिवर्तन आवश्य ही होगा। ‘जो हुआ अच्छे के लिए हुआ और जो होगा वह भी अच्छे के लिए होगा’ इस वाक्य को ध्यान में रखकर अपने कार्य को करो। 
किसी समय में एक राजा अपने एक नीति-निपुण मंत्री के साथ मंत्रणा करते समय सेब काटकर खा रहा था। यकायक उसका ध्यान भटका और चाकू की धार से राजा की अंगुली में घाव हो गया। उसकी अंगुली से रक्त बहने लगा। तभी मंत्री बोला, ‘जो कुछ हुआ अच्छे के लिए हुआ’। मंत्री के इस कथन पर राजा आगबबूला हो उठा। उसने तुरंत आदेश दिया की मंत्री को करागार में डाल दो। इस पर मंत्री पुनः बोला जो कुछ हो रहा अच्छे के लिए हो रहा है’।
एक दिन राजा जंगल में शिकार खेलने गया। जहाँ उसका एक शेर से सामना हुआ। शेर से मुकाबला करते करते वह मूच्छित होकर गिर पड़ा। उसकी मूच्छा टूटी तो उसने देखा वह बिल्कुल ठीक-ठाक है। उसने इसके कारण को जानने का प्रयास किया, तो उसने पाया कि उसकी अंगुली में चोट लगी है। शेर अपने शिकार को खाने से पूर्व उसका पूरा निरीक्षण करता है। निरीक्षण करने पर शेर ने पाया होगा कि राजा के चोटिल स्थान से दुर्गंध रही है। इस कारण उसने राजा को जीवित छोड़ दिया। जीवित बचने पर राजा अत्यधिक प्रसन्न हुआ। उसने राज्य में पहुँचकर सर्वप्रथम उस मंत्री को छोड़ने का आदेश दिया, जो सदैव कहता रहता था, ‘जो कुछ हुआ अच्छे के लिए हुआ।’ उसकी अंगुली में लगी चोट उसके लिए अच्छी ही साबित हुई। राजा ने मंत्री को अपने पास बुलाया और कहाµमेरी अंगूली में चोट लगाना तो मेरे लिए अच्छा था, परंतु तुम्हारा कारागार में जाना किस प्रकार से अच्छे के लिए हुआ। इस पर मंत्री ने उत्तर दियाµहे राजेश्वर! यदि मैं कारागार में नहीं होता तब आप अवश्य ही मुझे अपने साथ ले जाते ओर मेरी अंगुली में चोट न होने पर शेर मुझे खा जाता। इस दृष्टि से मेरा आप के साथ न जाने मेरे लिए ही हितकारी हुआ।
इस कहानी के आधार पर यह कहना ही यथोचित ठीक ही, जो हुआ अच्छे के लिए हुआ। इसी सोच के साथ कार्य करें। कार्य के प्रतिकूल परिणाम आने पर भी हिम्मत व हौंसला न छोड़ें। सकारात्मक सोच एवं नजरिये से आपकी भावनाएँ भी सकारात्मक होगी और हम सकारात्मक कदम उठाने में भी सक्षम बनेंगे। सकारात्मक सोच विकसित करने के लिए नियमित रूप से ध्यान लगाएं, सकारात्मक सोच बढ़ाने वाला साहित्य पढ़ें, तथा ऐसे लोगों की संगत करें जो आपको सदैव प्रोत्साहित करें। सदैव सफल होने के विषय में ही सोचें। इससे आपके मस्तिष्क में सकारात्मक धारणा बनेगी और आप सफलता के पथ पर अग्रसर होना प्रारंभ कर देंगे। इसके लिए बस प्रयास करने की आवश्यकता है।

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